लोग



  • शक्लो -सूरत में तुम भी बहुत खूब थे अक्लो-अर्जत भी होती तो क्या बात थी कब तलक यूँ चलेगी ये आवारगी लम्हा-लम्हा सँभलते तो क्या बात थी

  • मुँह में मिश्री बगल में खंजर निकले हैं सड़कों पर लोग हँसते, गुप-चुप छूते खंजर सहमे से खटकों से लोग जाने कितने लिये मुखौटे निकला करते घर से लोग बदल रहे हैं पल-पल चेहरे जाने किसके डर से लोग सुना कहीं बारूद फट गया देखे बहुत जमा थे लोग अल्लाह-अल्लाह करते देते झूठे कई दिलासे लोग हाथों में क्या-क्या बटोरते देखे अच्छे खासे लोग जख्मी थे जो उन्हें उठाते कुछ ही यहाँ-वहाँ थे लोग उनमें ही कुछ शामिल देखे फौजी वर्दी वाले लोग ऊँचे ओहदे, नेता-दादा जैसे भी देखे कुछ लोग मुआवज़ों का क्या-क्या होगा कुछ इस पर बतियाते लोग