गुलाब



  • मज़बूर न कर हो जाऊँ ख़फ़ा हो सारे ज़माने में चर्चा कि हर्फ़-ब-हर्फ सभी पढ़ लें खुल जाय कहीं, परचा-परचा 

  • गुलाब जाते-जाते उस दिन तुमने हमें थमाया एक गुलाब पंखुड़ियों में रंगो-बू थी लहक-लहक था सुर्ख गुलाब सुंदर सी इक इत्र की शीशी हमने उसमें रखा गुलाब आब की बूंदें टपका-टपका ताजा-ताज़ा रखा गुलाब हमदम तेरा कहाँ खो गया इक दिन बोला वही गुलाब उसे ढूँढने निकल पड़े हम साथ लिये थे वही गुलाब उस दिन किसी बाग में देखा तुम थे वो थी और गुलाब दिल का शीशा चटख गया था तुमने उसको दिया गुलाब शीशी चकनाचूर गिरा था बड़े जतन से रखा गुलाब पलभर में ही स्याह पढ़ा था मखमल से वो ढका गुलाब