उल्फ़त


उल्फ़त हुये जवाँ उनके अफ़साने इश्क बहुत मशहूर हुआ मिका देखके उनकी पाक मोहब्बत स आफ़ताब बेनूर हुआ वो उसका फलक वो उसकी माहरू चर्चे उनके खूब कू-ब-कू वो उनकी हसरतें उनका जुनूं गलशन-सेहरा बिखरी हर-( वो सब्ज़ वादियाँ, सुर्ख शफ़क वे पाक परिंदे कहाँ-कहाँ हर गोशे में सरगोशी-सी उनका अपना दिलशाद जहाँ लोगों ने कहा ये हीर-रांझणा उसने कहा कोई नाम न दो बस इतना करो किसी सिम्त किसी सफ़्फ़ाक का कोई जाल न हो या खुदा कहीं रंज़िश-तल्खी इन दोनों का फिर मेल न होतारीख़ न फिर दोहराये कभी फिर वस्ल-हिन का खेल न हो आफ़ताब-सूरज, बेनूर-हल्का, फलक- आसमां, माहरू- चाँद, कू-ब-कू- गली-गली, हर सूं-हर तरफ, शफ़क-, आसमान, दिलशाद- प्यारा, सिम्त- तरफ, सफ्फाक- बहेलिया, रंजिश-बुराई, तल्खी-क्रोध, वस्ल-हिज-प्रेम औ' जुदाई बोरगाa खला में तू उफ़क में शफ़क तेरी कुर्र-ए-अर्ज़ पे तेरा ही नूर देखा है मुझसे मत पूछ कि महबूब कहाँ है मेरा मैंने उसको न कहाँ-कहाँ देखा हैI