'डोलते अक्स' : अब आपके लिए

लखनऊ की सरजमीं, कॉलेज के वे खुशगवार दिन, खुशनुमा माहौल और हसीन उम्र का दौर, शेरो-शायरी का जज्बा, कुछ लिखने की तमन्ना, सुबहो-शाम शायराना सुरूर, ग़ज़लों की महफ़िलें, सुखनवरों के कलाम, इन सबका रंग ख़रामा-खरामा चढ़ता गया और न जाने कब कैसे उर्दू की मिठास जुबाँ में घुलती गई, नतीजतन शेरो-शायरी, नज्मों-गज़ल लिखने का शौक बढ़ा और आहिस्ताआहिस्ता वो रंग झरता गया कागज के सफों परअब जब उन सब रंगों को सँजोने बैठी तो उन दास्तानों के अक्स उभरते गये, कुछ वे अक्स, कुछ उम्र के काफ़िले से बटोरे हुए अक्स, कुछ ख्वाब, कुछ खयाल और बन गया एक सिलसिला जिसे मैंने नाम दिया'डोलते-अक्स'डोलते-अक्स (अस्थिर साये) जो अब आपके हाथों में है, तराशने-तलाशने के लिये बस... -सुनीति रावत