लोग
शक्लो -सूरत में तुम भी बहुत खूब थे अक्लो-अर्जत भी होती तो क्या बात थी कब तलक यूँ चलेगी ये आवारगी लम्हा-लम्हा सँभलते तो क्या बात थी मुँह में मिश्री बगल में खंजर निकले हैं सड़कों पर लोग हँसते, गुप-चुप छूते खंजर सहमे से खटकों से लोग जाने कितने लिये मुखौटे निकला करते घर से लोग बदल रहे हैं पल-पल चेहरे ज…